(यदुवंशी) plz join yadhuvansi on facebook
Tuesday, February 21, 2012
एक बार एक राजा ने अपने मंत्री से कहा, 'मुझे इन चार प्रश्नों के जवाब दो। जो यहां हो वहां नहीं, दूसरा- वहां हो यहां नहीं, तीसरा- जो यहां भी नहीं हो और वहां भी न हो, चौथा- जो यहां भी हो और वहां भी।'
मंत्री ने उत्तर देने के लिए दो दिन का समय मांगा। दो दिनों के बाद वह चार व्यक्तियों को लेकर राज दरबार में हाजिर हुआ और बोला, 'राजन! हमारे धर्मग्रंथों में अच्छे-बुरे कर्मों और उनके फलों के अनुसार स्वर्ग और नरक की अवधारणा प्रस्तुत की गई है। यह पहला व्यक्ति भ्रष्टाचारी है, यह गलत कार्य करके यद्यपि यहां तो सुखी और संपन्न दिखाई देता है, पर इसकी जगह वहां यानी स्वर्ग में नहीं होगी। दूसरा व्यक्ति सद्गृहस्थ है। यह यहां ईमानदारी से रहते हुए कष्ट जरूर भोग रहा है, पर इसकी जगह वहां जरूर होगी। तीसरा व्यक्ति भिखारी है, यह पराश्रित है। यह न तो यहां सुखी है और न वहां सुखी रहेगा। यह चौथा व्यक्ति एक दानवीर सेठ है, जो अपने धन का सदुपयोग करते हुए दूसरों की भलाई भी कर रहा है और सुखी संपन्न है। अपने उदार व्यवहार के कारण यह यहां भी सुखी है और अच्छे कर्म करन से इसका स्थान वहां भी सुरक्षित है।'
मंत्री ने उत्तर देने के लिए दो दिन का समय मांगा। दो दिनों के बाद वह चार व्यक्तियों को लेकर राज दरबार में हाजिर हुआ और बोला, 'राजन! हमारे धर्मग्रंथों में अच्छे-बुरे कर्मों और उनके फलों के अनुसार स्वर्ग और नरक की अवधारणा प्रस्तुत की गई है। यह पहला व्यक्ति भ्रष्टाचारी है, यह गलत कार्य करके यद्यपि यहां तो सुखी और संपन्न दिखाई देता है, पर इसकी जगह वहां यानी स्वर्ग में नहीं होगी। दूसरा व्यक्ति सद्गृहस्थ है। यह यहां ईमानदारी से रहते हुए कष्ट जरूर भोग रहा है, पर इसकी जगह वहां जरूर होगी। तीसरा व्यक्ति भिखारी है, यह पराश्रित है। यह न तो यहां सुखी है और न वहां सुखी रहेगा। यह चौथा व्यक्ति एक दानवीर सेठ है, जो अपने धन का सदुपयोग करते हुए दूसरों की भलाई भी कर रहा है और सुखी संपन्न है। अपने उदार व्यवहार के कारण यह यहां भी सुखी है और अच्छे कर्म करन से इसका स्थान वहां भी सुरक्षित है।'
Monday, February 20, 2012
जय श्री राम जय बजरंगी हनुमान, जीवन की हर सीढ़ी पर सबक सीखिए हनुमानजी से.... बचपन की सरलता हम हनुमानजी से सीख सकते हैं। जवानी की सक्रियता उनके पराक्रम की ही कहानी है। प्रौढ़ता में जो समझ होनी चाहिए, वह भी हनुमानजी हमें सिखाएंगे। और बुढ़ापा सफल होता है पूर्ण समर्पण से। भारतीय संस्कृति में चार की संख्या का बड़ा महत्व है। चार वर्ण, चार युग और चार अंत:करण को कई बार याद किया जाता है। तुलसीदासजी ने श्रीहनुमानचालीसा की चालीस चौपाइयों में भी चार के आंकड़े को एक जगह याद किया है। 29वीं चौपाई में वे लिखते हैं- चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा।। अर्थात जगत को प्रकाशित करने वाले आपके नाम का प्रताप चारों युगों (सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग) में है। श्रीहनुमान पवनसुत हैं और पवन न सिर्फ चारों युग में है, बल्कि प्रत्येक स्थान पर है। विदेश में पानी अलग मिल सकता है, धरती अलग मिल सकती है, वहां भोजन अलग मिल सकता है, किंतु हवा सारी दुनिया में एक जैसी मिलती है। पानी, अग्नि को रोका जा सकता है, लेकिन आप हवा का बंटवारा नहीं कर सकते। चारों युग का एक और अर्थ है। हमारे जीवन की भी चार अवस्थाएं हैं - बचपन, जवानी, पौढ़ता और बुढ़ापा। प्रताप का एक साधारण सा अर्थ होता है योग्यता। इन चारों उम्र में हनुमानजी योग्यता की तरह हमारे जीवन में आ सकते हैं। बचपन की सरलता हम हनुमानजी से सीख सकते हैं। जवानी की सक्रियता उनके पराक्रम की ही कहानी है। प्रौढ़ता में जो समझ होनी चाहिए, वह भी हनुमानजी हमें सिखाएंगे। और बुढ़ापा सफल होता है पूर्ण समर्पण से। हनुमानजी समर्पण के देवता हैं। इन चारों अवस्थाओं में तालमेल बिठाना है तो मुस्कान सेतु का काम करती है। इसीलिए आप किसी भी उम्र के हों जरा मुस्कराइए..। बजरंगबली हनुमान की जय..!!
Sunday, February 19, 2012
“भगवान शिव की भक्ति का पर्व –महाशिवरात्रि”
आप सभी को राधाकृपा परिवार की ओर से “महाशिवरात्रि पर्व” की हार्दिक शुभकामनायें |
फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है. माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान् शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था. प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं. इसीलिए इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा गया.और इस दिन शिव का विवाह माता पार्वती जी के साथ हुआ था,
महाशिवरात्रि व्रत की विधि, कथा और महत्व जाने
आप सभी को राधाकृपा परिवार की ओर से “महाशिवरात्रि पर्व” की हार्दिक शुभकामनायें |
फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है. माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान् शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था. प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं. इसीलिए इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा गया.और इस दिन शिव का विवाह माता पार्वती जी के साथ हुआ था,
महाशिवरात्रि व्रत की विधि, कथा और महत्व जाने
श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय ४ में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है:-
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥७॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥८॥
भावार्थः
जब जब धर्म की हानि होने लगती है और अधर्म आगे बढ़ने लगता है, तब तब मैं स्वयं की सृष्टि करता हूं, अर्थात् जन्म लेता हूं । सज्जनों की रक्षा एवं दुष्टों के विनाश और धर्म की पुनःस्थापना के लिए मैं विभिन्न युगों (कालों) मैं अवतरित होता हूं ।
द्वापर के अंतिम चरण की बात है. अनेक दुष्ट आततायी राजाओं ने इस धरा पर आतंक फैला रखा था . प्रजा उनके अत्याचारों से त्राहि त्राहि कर रही थी. धर्म का नाश हो चुका था, अधर्म फल-फूल रहा था. उस समय अनाचार इतना बढ़ गया था कि उसका बोझ उठा पाने में पृथ्वी असमर्थ हो गई थी. उससे छुटकारा पाने के लिए वह गौ का रूप धारण करके ब्रह्मजी की शरण में गयी. उस समय वह अत्यंत घबरायी हुई थी. वह बड़े करुण स्वर में रँभा रही थी और उसके नेत्रों से आंसू बह बह कर उसके मुंह पर आ रहे थे. ब्रह्मा जी के पास जकर उसने अपनी पूरी कष्ट कहानी कह सुनायी. ब्रह्माजी ने पृथ्वी के कष्टों को सुनकर उसे आश्वस्त किया और वे भगवान शंकर तथा अन्य देवताओं को लेकर पृथ्वी के साथ क्षीर सागर में नारायण के पास गए. उस समय श्रीनारायण सो रहे थे. उनको सोते जान ब्रह्माजी सभी देवताओं के साथ परम पुरुष सर्वान्तर्यामी प्रभु की स्तुति करने लगे. स्तुति करते करते ब्रह्माजी समाधिस्त हो गये. उन्होंने समाधि अवस्था में आकाशवाणी सुनी. तब जगत के निर्माता ब्रह्मा जी ने देवताओं से कहा-" हे प्रिय देवतागण! मैंने भगवान की वाणी सुनी है. तुम लोग भी उसे सुनलो और फिर अक्षरसः उसका पालन करो. भगवान को पृथ्वी के कष्टों के विषय में पहले से ही सब पता है. वे शीघ्र ही यदुकुल में वसुदेव के घर देवकी की कोख से जन्म लेंगें. उस समय सभी देवगण अपने अपने अंश से वहाँ ग्वाल-बाल और गोपियों के रूप में जन्म लेंगे. भगवान शेष भी वहां उनके अग्रज के रूप में अवरित होंगे. तब वे दुष्टों का संहार करके पृथ्वी का भार हल्का कर देंगे.
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥७॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥८॥
भावार्थः
जब जब धर्म की हानि होने लगती है और अधर्म आगे बढ़ने लगता है, तब तब मैं स्वयं की सृष्टि करता हूं, अर्थात् जन्म लेता हूं । सज्जनों की रक्षा एवं दुष्टों के विनाश और धर्म की पुनःस्थापना के लिए मैं विभिन्न युगों (कालों) मैं अवतरित होता हूं ।
द्वापर के अंतिम चरण की बात है. अनेक दुष्ट आततायी राजाओं ने इस धरा पर आतंक फैला रखा था . प्रजा उनके अत्याचारों से त्राहि त्राहि कर रही थी. धर्म का नाश हो चुका था, अधर्म फल-फूल रहा था. उस समय अनाचार इतना बढ़ गया था कि उसका बोझ उठा पाने में पृथ्वी असमर्थ हो गई थी. उससे छुटकारा पाने के लिए वह गौ का रूप धारण करके ब्रह्मजी की शरण में गयी. उस समय वह अत्यंत घबरायी हुई थी. वह बड़े करुण स्वर में रँभा रही थी और उसके नेत्रों से आंसू बह बह कर उसके मुंह पर आ रहे थे. ब्रह्मा जी के पास जकर उसने अपनी पूरी कष्ट कहानी कह सुनायी. ब्रह्माजी ने पृथ्वी के कष्टों को सुनकर उसे आश्वस्त किया और वे भगवान शंकर तथा अन्य देवताओं को लेकर पृथ्वी के साथ क्षीर सागर में नारायण के पास गए. उस समय श्रीनारायण सो रहे थे. उनको सोते जान ब्रह्माजी सभी देवताओं के साथ परम पुरुष सर्वान्तर्यामी प्रभु की स्तुति करने लगे. स्तुति करते करते ब्रह्माजी समाधिस्त हो गये. उन्होंने समाधि अवस्था में आकाशवाणी सुनी. तब जगत के निर्माता ब्रह्मा जी ने देवताओं से कहा-" हे प्रिय देवतागण! मैंने भगवान की वाणी सुनी है. तुम लोग भी उसे सुनलो और फिर अक्षरसः उसका पालन करो. भगवान को पृथ्वी के कष्टों के विषय में पहले से ही सब पता है. वे शीघ्र ही यदुकुल में वसुदेव के घर देवकी की कोख से जन्म लेंगें. उस समय सभी देवगण अपने अपने अंश से वहाँ ग्वाल-बाल और गोपियों के रूप में जन्म लेंगे. भगवान शेष भी वहां उनके अग्रज के रूप में अवरित होंगे. तब वे दुष्टों का संहार करके पृथ्वी का भार हल्का कर देंगे.
Saturday, February 18, 2012
श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः
हे कृष्ण करुणासिन्धो दीनबन्धो जगत्पते।
गोपेश गोपिकाकान्त राधाकान्त नमोअस्तु ते ॥
अर्थ:-
हे कृष्ण! आप दुखियो के सखा तथा सृष्टि के उद्गम है।
आप गोपियो के स्वमी तथा राधा रानी के प्रेमी है।
मै आपको सादर प्रणाम करता हू।
तप्तकाञ्चनगौराङ्गी राधे व्रिन्दावनेश्वरि ।
वृषभानुसुते देवि प्रणमामि हरिप्रिये॥
अर्थ:
मै उन राधारानी को प्रणाम करता हू जिनकी शारीरिक कान्ति पिघले सोने के सदृश है,
जो वृन्दावन कि महारानी है। आप वृषभानु की पुत्री है और भगवान कृष्ण को अत्यन्त प्रिय हैं।
हे कृष्ण करुणासिन्धो दीनबन्धो जगत्पते।
गोपेश गोपिकाकान्त राधाकान्त नमोअस्तु ते ॥
अर्थ:-
हे कृष्ण! आप दुखियो के सखा तथा सृष्टि के उद्गम है।
आप गोपियो के स्वमी तथा राधा रानी के प्रेमी है।
मै आपको सादर प्रणाम करता हू।
तप्तकाञ्चनगौराङ्गी राधे व्रिन्दावनेश्वरि ।
वृषभानुसुते देवि प्रणमामि हरिप्रिये॥
अर्थ:
मै उन राधारानी को प्रणाम करता हू जिनकी शारीरिक कान्ति पिघले सोने के सदृश है,
जो वृन्दावन कि महारानी है। आप वृषभानु की पुत्री है और भगवान कृष्ण को अत्यन्त प्रिय हैं।
Wednesday, February 15, 2012
कहते है कि जो वृदांवन में शरीर को त्यागता है. तो उन्हें अगला जन्म श्री वृदांवन में ही होता है. और अगर कोई मन में ये सोच ले, संकल्प कर ले कि हम वृदावंन जाएगे, और यदि रास्ते में ही मर जाए तो भी उसका अगला जन्म वृदांवन में ही होगा. केवल संकल्प मात्र से उसका जन्म श्री धाम में होता है.
ऐसा ही एक प्रसंग श्री धाम वृन्दावन है, तीन मित्र थे जो युवावस्था में थे तीनों बंग देश के थे. तीनों में बडी गहरी मित्रता थी, तीनो में से एक बहुत सम्पन्न परिवार का था पर उसका मन श्रीधाम वृदांवन में अटका था.....
ऐसा ही एक प्रसंग श्री धाम वृन्दावन है, तीन मित्र थे जो युवावस्था में थे तीनों बंग देश के थे. तीनों में बडी गहरी मित्रता थी, तीनो में से एक बहुत सम्पन्न परिवार का था पर उसका मन श्रीधाम वृदांवन में अटका था.....
Wednesday, February 8, 2012
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे || हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे || हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे || हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे || हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे || हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे || हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे || हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे || हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||
राधा ऐसी भयी श्याम की दीवानी,
की बृज की कहानी हो गयी
एक भोली भाली गौण की ग्वालीन ,
तो पंडितों की वानी हो गई
राधा न होती तो वृन्दावन भी न होता
कान्हा तो होते बंसी भी होती,
बंसी मैं प्राण न होते
प्रेम की भाषा जानता न कोई
कनैया को योगी मानता न कोई
बीन परिणय के देख प्रेम की पुजारीन
कान्हा की पटरानी हो गयी
राधा ऐसी भाई श्याम की
राधा की पायल न बजती तो मोहन ऐसा न रास रचाते
नीन्दीयाँ चुराकर , मधुवन बुलाकर
अंगुली पे कीसको नचाते
क्या ऐसी कुश्बू चन्दन मैं होती
क्या ऐसी मीश्री माखन मैं होती
थोडा सा माखन खिलाकर वोह ग्वालिन
अन्नपुर्ना सी दानी हो गयी
राधा ऐसी भाई श्याम की……….
राधा न होती तो कुंज गली भी
ऐसी निराली न होती
राधा के नैना न रोते तो
जमुना ऐसी काली न होती
सावन तो होता जुले न होते
राधा के संग नटवर जुले ना होते
सारा जीवन लूटन के वोह भीखारन
धनिकों की राजधानी हो गयी
राधा ऐसी भाई श्याम की……….
की बृज की कहानी हो गयी
एक भोली भाली गौण की ग्वालीन ,
तो पंडितों की वानी हो गई
राधा न होती तो वृन्दावन भी न होता
कान्हा तो होते बंसी भी होती,
बंसी मैं प्राण न होते
प्रेम की भाषा जानता न कोई
कनैया को योगी मानता न कोई
बीन परिणय के देख प्रेम की पुजारीन
कान्हा की पटरानी हो गयी
राधा ऐसी भाई श्याम की
राधा की पायल न बजती तो मोहन ऐसा न रास रचाते
नीन्दीयाँ चुराकर , मधुवन बुलाकर
अंगुली पे कीसको नचाते
क्या ऐसी कुश्बू चन्दन मैं होती
क्या ऐसी मीश्री माखन मैं होती
थोडा सा माखन खिलाकर वोह ग्वालिन
अन्नपुर्ना सी दानी हो गयी
राधा ऐसी भाई श्याम की……….
राधा न होती तो कुंज गली भी
ऐसी निराली न होती
राधा के नैना न रोते तो
जमुना ऐसी काली न होती
सावन तो होता जुले न होते
राधा के संग नटवर जुले ना होते
सारा जीवन लूटन के वोह भीखारन
धनिकों की राजधानी हो गयी
राधा ऐसी भाई श्याम की……….
कृष्णा जिनका नाम है, गोकुल जिनका धाम है
ऐसे श्री भगवान को बारम्बार प्रणाम है ।।
यशोदा जिनकी मइया है नन्द जी जिनके बप्इया है
ऐसे श्री गोपाल को बारम्बार प्रणाम है ।।
लूट-लूट दही माखन खायो, ग्वाल-वाल संग धेनू चरायो
ऐसे लीलाधाम को बारम्बार प्रणाम है ।।
द्रुपद सुता को लाज बचायो, ग्रहेस गजको पन्ड छुड़ायो
ऐसे कृपाधाम को बारम्बार प्रणाम है ।।
ऐसे श्री भगवान को बारम्बार प्रणाम है ।।
यशोदा जिनकी मइया है नन्द जी जिनके बप्इया है
ऐसे श्री गोपाल को बारम्बार प्रणाम है ।।
लूट-लूट दही माखन खायो, ग्वाल-वाल संग धेनू चरायो
ऐसे लीलाधाम को बारम्बार प्रणाम है ।।
द्रुपद सुता को लाज बचायो, ग्रहेस गजको पन्ड छुड़ायो
ऐसे कृपाधाम को बारम्बार प्रणाम है ।।
रे मनवा प्रेम जगत का सार
प्रेम पुजारिन राधे रानी, कृष्ण प्रेम अवतार
प्रेम की मुरली, प्रेम की जमुना,
प्रेम ही राधे, प्रेम ही कृष्णा।
एक दूजे के है अनुरागी,
... सब में जगायें प्रेम की तृष्णा
प्रेम में डूबे प्राण करत हैं
प्रेम की जय जयकार...............मनवा प्रेम जगत का सार
प्रेम डगर पर चलते चलते,
भक्ति की पावन नदिया आये
भक्ति की नदिया बहते-बहते
प्रेम के सागर में मिल जाये
भक्ति के दोनो ओर प्रेम है,
भक्त खडे मझधार मनवा प्रेम जगत का सार
प्रेम पुजारिन राधे रानी, कृष्ण प्रेम अवतार
प्रेम की मुरली, प्रेम की जमुना,
प्रेम ही राधे, प्रेम ही कृष्णा।
एक दूजे के है अनुरागी,
... सब में जगायें प्रेम की तृष्णा
प्रेम में डूबे प्राण करत हैं
प्रेम की जय जयकार...............मनवा प्रेम जगत का सार
प्रेम डगर पर चलते चलते,
भक्ति की पावन नदिया आये
भक्ति की नदिया बहते-बहते
प्रेम के सागर में मिल जाये
भक्ति के दोनो ओर प्रेम है,
भक्त खडे मझधार मनवा प्रेम जगत का सार
Monday, February 6, 2012
आज हैं !! षटतिला एकादशी !!
"षटतिला एकादशी" माघ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी का व्रत रखा जाता है. षटतिला एकादशी के दिन तिलों का छ: प्रकार से उपयोग किया जाता है. जैसे - तिल से स्नान करना, तिल का उबटन लगाना, तिल से हवन करना, तिल से तर्पण करना, तिल का भोजन करना और तिलों का दान करना - ये छ: प्रकार के उपयोग हैं. इसलिए इसे षटतिला एकादशी व्रत कहा जाता है.
षटतिला एकादशी की विधि, कथा और महत्व जाने?............सभी जानकारी के लिये दी हुई लिंक पर क्लिक करके जरुर पढ़े..............
facebook.com/yadhuvansideepak
"षटतिला एकादशी" माघ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी का व्रत रखा जाता है. षटतिला एकादशी के दिन तिलों का छ: प्रकार से उपयोग किया जाता है. जैसे - तिल से स्नान करना, तिल का उबटन लगाना, तिल से हवन करना, तिल से तर्पण करना, तिल का भोजन करना और तिलों का दान करना - ये छ: प्रकार के उपयोग हैं. इसलिए इसे षटतिला एकादशी व्रत कहा जाता है.
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गोपाल तेरी पूजा हम से न बनी रे...नंदलाला तेरी पूजा हम से न बनी रे... हम से न बनी रे.............हम से न बनी रे.......... गोपाल तेरी पूजा हम से न बनी रे...नंदलाला तेरी पूजा हम से न बनी रे... 1. कहा पाऊ सरयू मै......... कहा पाऊ गंगा..... कहा पाऊ यमुना अमृत से भरी रे .......नंदलाला तेरी पूजा हम से न बनी रे... 2.कहा पाऊ मोर मुकुट कहा पाऊ पताका ...कहा पाऊ लकुटी हिरो से जड़ी रे तेरी कहा पाऊ लकुटी हिरो से जड़ी रे 3. कहा पाऊ चन्दन मै ..कहा पाऊ तुलसी.... कहा पाऊ डलिया फूलो से भरी रे......नंदलाला तेरी पूजा हम से न बनी रे... 4.कहा पाऊ माखन.... मै कहा पाऊ मिश्री.... कहा पाऊ मटकी दही से भरी रे........नंदलाला तेरी पूजा हम से न बनी रे... 5.मैंने सुना है तुम भक्ति से मिलते हो ... कहा पाऊ भक्ति मै भाव भरी रे....नंदलाला तेरी पूजा हम से न बनी रे... गोपाल तेरी पूजा हम से न बनी रे...नंदलाला तेरी पूजा हम से न बनी रे... हम से न बनी रे.............हम से न बनी रे.......... गोपाल तेरी पूजा हम से न बनी रे...नंदलाला तेरी पूजा हम से न बनी रे...
Online – “Mahamantra Jap”
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Sunday, February 5, 2012
Shri krishna gobind hare murari heynath narayan vasudeva !!
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Saturday, February 4, 2012
श्री बरसाने वाली की जय
हमारी प्यारी राधा रानी जी की जय
सभी भगतों की नैया पार क...
हमारी प्यारी राधा रानी जी की जय
सभी भगतों की नैया पार क...
श्री बरसाने वाली की जय हमारी प्यारी राधा रानी जी की जय सभी भगतों की नैया पार करने वाली दया मई सरकार की जय श्यामा जु मेरी नैया उस पार लगा देना अब तक जो निभाया है आगे भी निभा देना दल बल के साथ माया घेरे जो मुझे आकर तुम देखती न रहना बस आके बचा लेना श्यामा जु मेरी नैया उस पार लगा देना संभव है झंझटों में में तुमको भूल जाऊँ तुम देखती न रहना बस आके बचा लेना श्यामा जु मेरी नैया उस पार लगा देना सभी भगतों की नइया पार करने वाली दया मई श्यामा जु सरकार की जय श्री बरसाने वाली की जय
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chatur-vidha bhajante mam
janah sukritino ’rjuna
arto jijnasur artharthi
jnani cha bharatarsabha" (Bhagwat Gita: Chapter Seven verse 16)
"Sri Krishna said: O Arjuna, four kinds of pious men begin to render devotional service unto Me—the distressed, the inquisitive, the desirer of wealth, and the one who is searching for knowledge of the Absolute."
"udarah sarva evaite
jnani tv atmaiva me matam
asthitah sa hi yuktatma
mam evanuttamam gatim" (Bhagwat Gita: Chapter Seven verse 18)
"Sri Krishna said: All these devotees are undoubtedly magnanimous souls, but he who is situated in knowledge of Me, I consider to be just like My own self. Being engaged in My transcendental service, he/she is sure to attain Me, the highest and most perfect goal."
HARE KRISHNA...........
janah sukritino ’rjuna
arto jijnasur artharthi
jnani cha bharatarsabha" (Bhagwat Gita: Chapter Seven verse 16)
"Sri Krishna said: O Arjuna, four kinds of pious men begin to render devotional service unto Me—the distressed, the inquisitive, the desirer of wealth, and the one who is searching for knowledge of the Absolute."
"udarah sarva evaite
jnani tv atmaiva me matam
asthitah sa hi yuktatma
mam evanuttamam gatim" (Bhagwat Gita: Chapter Seven verse 18)
"Sri Krishna said: All these devotees are undoubtedly magnanimous souls, but he who is situated in knowledge of Me, I consider to be just like My own self. Being engaged in My transcendental service, he/she is sure to attain Me, the highest and most perfect goal."
HARE KRISHNA...........
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे || हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||हरे कृष्ण हरे
कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे || हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण
कृष्ण हरे हरे || हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे
हरे || हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे || हरे
राम हरे राम राम राम हरे हरे ||हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे || हरे राम हरे
राम राम राम हरे हरे ||हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे || हरे राम हरे राम राम
राम हरे हरे ||हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे || हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||
कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे || हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण
कृष्ण हरे हरे || हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे
हरे || हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे || हरे
राम हरे राम राम राम हरे हरे ||हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे || हरे राम हरे
राम राम राम हरे हरे ||हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे || हरे राम हरे राम राम
राम हरे हरे ||हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे || हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||
Bhoomi tatv jal tatv agni tatv
vayu tatv brahm tatv vyom tatv
Vishnu tatv bhori hai
sankadi siddhi tatv anand prasiddhi tatv
narad suresh tatv Shiv tatv Gauri hai
prem kahe naag aur kinnar ko tatv dekhyo
shesh aur Mahesh tatv meti meti jodi hai
tatvan ke tatv jag jeevan SRI KRISHNA CHANDRA
aur Krishna ko tatv Vrishbhanu ki Kishori hai.
Jai Shri Radha Rani ki.
vayu tatv brahm tatv vyom tatv
Vishnu tatv bhori hai
sankadi siddhi tatv anand prasiddhi tatv
narad suresh tatv Shiv tatv Gauri hai
prem kahe naag aur kinnar ko tatv dekhyo
shesh aur Mahesh tatv meti meti jodi hai
tatvan ke tatv jag jeevan SRI KRISHNA CHANDRA
aur Krishna ko tatv Vrishbhanu ki Kishori hai.
Jai Shri Radha Rani ki.
Friday, February 3, 2012
एक मां के प्राण उसके बच्चों में बसते हैं। उनके बिना वह अधूरी है। ठीक उसी तरह भगवान के लिए उनके
एक मां के प्राण उसके बच्चों में बसते हैं। उनके बिना वह अधूरी है। ठीक उसी तरह भगवान के लिए उनके
भक्त हैं, जिसके बिना वे अधूरे हैं।
बच्चे यदि पल भर के लिए भी मां से जुदा हो जाते हैं, तो वह व्याकुल हो जाती है। बच्चे पर थोडा सा कष्ट भी
उनके लिए चिंता का कारण बन जाता है।
बच्चा खेल-खेल में भले ही मां को भूल जाए, मां उसकी पल-पल की सुध लेती रहती है। भगवान भी अपने
सच्चे भक्त को एक पल के लिए भी नहीं भूलते हैं।
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