“भगवान शिव की भक्ति का पर्व –महाशिवरात्रि”
आप सभी को राधाकृपा परिवार की ओर से “महाशिवरात्रि पर्व” की हार्दिक शुभकामनायें |
फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है. माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान् शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था. प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं. इसीलिए इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा गया.और इस दिन शिव का विवाह माता पार्वती जी के साथ हुआ था,
महाशिवरात्रि व्रत की विधि, कथा और महत्व जाने
महाशिरात्रि के पावन पर्व की सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ!
ॐ नमः शिवाय
हर हर महादेव
श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय ४ में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है:-
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥७॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥८॥
भावार्थः
जब जब धर्म की हानि होने लगती है और अधर्म आगे बढ़ने लगता है, तब तब मैं स्वयं की सृष्टि करता हूं, अर्थात् जन्म लेता हूं । सज्जनों की रक्षा एवं दुष्टों के विनाश और धर्म की पुनःस्थापना के लिए मैं विभिन्न युगों (कालों) मैं अवतरित होता हूं ।
द्वापर के अंतिम चरण की बात है. अनेक दुष्ट आततायी राजाओं ने इस धरा पर आतंक फैला रखा था . प्रजा उनके अत्याचारों से त्राहि त्राहि कर रही थी. धर्म का नाश हो चुका था, अधर्म फल-फूल रहा था. उस समय अनाचार इतना बढ़ गया था कि उसका बोझ उठा पाने में पृथ्वी असमर्थ हो गई थी. उससे छुटकारा पाने के लिए वह गौ का रूप धारण करके ब्रह्मजी की शरण में गयी. उस समय वह अत्यंत घबरायी हुई थी. वह बड़े करुण स्वर में रँभा रही थी और उसके नेत्रों से आंसू बह बह कर उसके मुंह पर आ रहे थे. ब्रह्मा जी के पास जकर उसने अपनी पूरी कष्ट कहानी कह सुनायी. ब्रह्माजी ने पृथ्वी के कष्टों को सुनकर उसे आश्वस्त किया और वे भगवान शंकर तथा अन्य देवताओं को लेकर पृथ्वी के साथ क्षीर सागर में नारायण के पास गए. उस समय श्रीनारायण सो रहे थे. उनको सोते जान ब्रह्माजी सभी देवताओं के साथ परम पुरुष सर्वान्तर्यामी प्रभु की स्तुति करने लगे. स्तुति करते करते ब्रह्माजी समाधिस्त हो गये. उन्होंने समाधि अवस्था में आकाशवाणी सुनी. तब जगत के निर्माता ब्रह्मा जी ने देवताओं से कहा-" हे प्रिय देवतागण! मैंने भगवान की वाणी सुनी है. तुम लोग भी उसे सुनलो और फिर अक्षरसः उसका पालन करो. भगवान को पृथ्वी के कष्टों के विषय में पहले से ही सब पता है. वे शीघ्र ही यदुकुल में वसुदेव के घर देवकी की कोख से जन्म लेंगें. उस समय सभी देवगण अपने अपने अंश से वहाँ ग्वाल-बाल और गोपियों के रूप में जन्म लेंगे. भगवान शेष भी वहां उनके अग्रज के रूप में अवरित होंगे. तब वे दुष्टों का संहार करके पृथ्वी का भार हल्का कर देंगे.
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