Monday, December 17, 2012

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इन्ही के सहारे जीए जा रहे है,
नाम का अमृत पीए जा रहे हैं।
मेरा बिगड़ा जीवन संवारा ना होता,
तो दुनिया में कोई हमारा ना होता॥




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Saturday, December 15, 2012

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एक बार एक राजा शिकार के उद्देश्य से अपने काफिले के साथ किसी जंगल से गुजर रहा था | दूर दूर तक शिकार नजर नहीं आ रहा था, वे धीरे धीरे घनघोर जंगल में प्रवेश करते गए | अभी कुछ ही दूर गए थे की उन्हें कुछ डाकुओं के छिपने की जगह दिखाई दी | जैसे ही वे उसके पास पहुचें कि पास के पेड़ पर बैठा तोता बोल पड़ा – ,
” पकड़ो पकड़ो एक राजा आ रहा है इसके पास बहुत सारा सामान है लूटो लूट
ो जल्दी आओ जल्दी आओ |”

तोते की आवाज सुनकर सभी डाकू राजा की और दौड़ पड़े | डाकुओ को अपनी और आते देख कर राजा और उसके सैनिक दौड़ कर भाग खड़े हुए | भागते-भागते कोसो दूर निकल गए | सामने एक बड़ा सा पेड़ दिखाई दिया | कुछ देर सुस्ताने के लिए उस पेड़ के पास चले गए , जैसे ही पेड़ के पास पहुचे कि उस पेड़ पर बैठा तोता बोल पड़ा – आओ राजन हमारे साधू महात्मा की कुटी में आपका स्वागत है | अन्दर आइये पानी पीजिये और विश्राम कर लीजिये | तोते की इस बात को सुनकर राजा हैरत में पड़ गया , और सोचने लगा की एक ही जाति के दो प्राणियों का व्यवहार इतना अलग-अलग कैसे हो सकता है | राजा को कुछ समझ नहीं आ रहा था | वह तो
ते की बात मानकर अन्दर साधू की कुटिया की ओर चला गया, साधू महात्मा को प्रणाम कर उनके समीप बैठ गया और अपनी सारी कहानी सुनाई | और फिर धीरे से पूछा, “ऋषिवर इन दोनों तोतों के व्यवहार में आखिर इतना अंतर क्यों है |”

साधू महात्मा धैर्य से सारी बातें सुनी और बोले ,” ये कुछ नहीं राजन बस संगति का असर है | डाकुओं के साथ रहकर तोता भी डाकुओं की तरह व्यवहार करने लगा है और उनकी ही भाषा बोलने लगा है | अर्थात जो जिस वातावरण में रहता है वह वैसा ही बन जाता है कहने का तात्पर्य यह है कि मूर्ख भी विद्वानों के साथ रहकर विद्वान बन जाता है और अगर विद्वान भी मूर्खों के संगत में रहता है तो उसके अन्दर भी मूर्खता आ जाती है |

शिक्षा - हमें संगती सोच समझ कर करनी चाहिए




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Thursday, December 13, 2012

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गाम के मंदिर में एक बाबा रहता था उसको भगवान पर बहुत विश्वास था.एक बार गाम की नदी में बाढ़ आगई, सब लोग जाने लगे, लोगो ने बाबा को भी चलने के लिए कहा लेकिन बाबा नहीं गया वो बोला की मै भगवान को छोड़ कर नहीं जाउगा, मेरी रक्षा तो खुद भगवान करेगे, लोग चले गए, पानी और बढ गया, सेना के लोग नाव लेकर आये बाब को कहा चलने को बाबा नहीं गया.पानी मंदिर में भर ने लगा, हलिकोप्टर से कुछ लोग आये कहा बाबा अब तो चलो बाबा नहीं गया. कहने लगा की मेरी रक्षा के लिए भगवान है, पानी और बढ़ गया बाबा डूब कर मर गया वो भगवान के सामने आया, बाबा ने कहा की मैंने तेरी सेवा में जीवन लगा दिया और तू मुझे बचाने भी नहीं आया. तब भगवान ने मुस्करा कर कहा- "अरे मुर्ख,! जो गाव वाले आये थे वो में ही था, जो नाव लेकर आये थे वो भी मेही था, जो हलिकोप्टर लेकर आया वो भी मै था. लेकिन तुने मुझे नहीं पहचाना तो क्या फायदा है तेरी इस दिखावटी सेवा का." ( भगबान हर जगह है बस उसको पहचान ने की जरुरत है, आप जब किसी दुखी और गरीब को देखे तो मुह न फेरे ये देखे की उस रूप में भगवान आप की परीक्षा लेने तो नहीं आये.आप सब की मदद करे इश्वर आप की मदद के लिए हर जगह हर समय विद्यमान है..
जय श्री कृष्ण!!




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एक विद्वान् संत को आदत थी हर बात पे ये कहने की --नारायण नारायण प्रभु तेरा शुक्रिया है तू जो करता है अच्छा ही करता है !! उनके चेलों को बड़ा अजीब लगता था हर अच्छे काम व् बुरे काम पे ये कहना !! उनको चिड होती थी !! एक दिन महात्मा तुलसी का पौधा लगाने के लिए खुरपे से ज़मीन खोद रहे थे की खुरपा उनकी उंगलीओं पर लग गया खूब खून बहने लगा !! उनके चेलों ने जखम धो कर पट्टी बाँधी !! संत बार बार बोल रहे थे नार
ायण न
ारायण प्रभु तेरा शुक्रिया है तू जो करता है अच्छा ही करता है !!चेले कह रहे थे क्या ये अच्छा हुआ की आपकी ऊँगली कट गयी ???
अगले दिन गुरु जी एक ख़ास शिष्य के साथ जंगल के अन्दर बने माँ काली के मदिर मे दर्शन के लिए निकल पड़े !! शिष्य भी साथ था दोपहर हुई तो गुरूजी ने कहा प्यास लगी होगी तुमको जाओ थोडा जल ले आओ हम इस पेड़ के नीचे विश्राम करते हैं !! शिष्य पानी लेने निकला तो रास्ता भूल गया !! शाम हो गयी !! शिष्य को रास्ता न मिला गुरूजी वहीँ उसका इंतज़ार कर रहे थे !! तबी वहीँ एक जंगली आदिवासी लोगों का झुण्ड ढोल नगारे बजा कर वहाँ आ पहुंचा उन्होंने विद
्वान् संत को पकड लिया व् ख़ुशी से नाचते गाते उनको बाँध कर लेकर चल पड़े !!संत बार बार बोल रहे थे नारायण नारायण प्रभु तेरा शुक्रिया है तू जो करता है अच्छा ही करता है !!वो उनको काली मंदिर ले गए व् उनको बोले की हम हर साल माँ कलि को मनुष्य की बलि देते है !! सुबह आपकी बलि देंगे व् आपका रक्त माँ काली भोग लगा लेंगी !! सारी रात उनको बाँध के रक्खा !! उधर शिष्य सारी रात जंगले मे डरा सहमा बैठा रहा व् गालिआं निकालता रहा भगवान् को की तू बेरहम है तू दया नहीं करता आदि !! सुबह हुई संत को बोला स्नान कर के आओ ये काला चोला पहनो आपकी बलि देंगे !! संत तय्यार हुए व् माँ के आगे आ कर बैठ गए !!चेहरे पर कोई शिकन नहीं !!संत बार बार बोल रहे थे नारायण नारायण प्रभु तेरा शुक्रिया है तू जो करता है अच्छा ही करता है !!आदिवासी जल्लाद बोला आप साष्टांग प्रणाम की मुद्रा मे लेट जाओ वो लेट गए !! वो बोला अपने दोनों हाथ जोड़ करमाँ काली को प्रणाम करो !!संत ने दोनों हाथ ऊपर उठाये व् फिर बोले -- नारायण नारायण प्रभु तेरा शुक्रिया है तू जो करता है अच्छा ही करता है !!जल्लाद गुस्से से बोल पड़ा ---ये किसको पकड़ लाये तुम इसका तो अंग भंग हुआ है इसकी बलि नहीं दी जा सकती माँ रुष्ट हो जायेगी !!उन्होंने संत को धक्के मार कर बाहर निकाल दिया मंदिर से !!
संत वापिस आ रहे थे की शिष्य उनको मिल गया !!उसने बताया की मै रास्ता भूल गया था बहुत बुरी रात कटी !! संत ने उसको बताया की आज कैसे भगवान् ने जो किया अच्छा किया !!मेरी जान आदिवासी लोगों ने बक्श दी !!अगर मेरी ऊँगली ना कटी होती तो मेरी बलि दे दी जाती !! शिष्य बोला चलो वो तो जो अच्छा हुआ ठीक है पर मेरा रास्ता भूल जाना कैसे अच्छा हुआ ???? संत बोले -- प्यारे अगर तू मेरे साथ होता तो मुझे छोड़ दिया जाते पर तू तो पक्का बलि चढ़ जाता क्योंकि तेरा तो कोई अंग भंग नहीं हुआ था !! इसलिए हमेशा उस परमात्मा की राजा मे ही राज़ी रहा करो और बोलो-- नारायण नारायण प्रभु तेरा शुक्रिया है तू जो करता है अच्छा ही करता है !! अब तो शिष्य भी बोलने लगा नारायण नारायण प्रभु तेरा शुक्रिया है तू जो करता है अच्छा ही करता है !!आप सब भी बोला करो -नारायण नारायण प्रभु तेरा शुक्रिया है तू जो करता है अच्छा ही करता है !!नारायण!! नारायण!!नारायण !!नारायण!!
एक संत के श्रीमुख से ...................




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Thursday, August 9, 2012

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कहते है कि वर्तमान वृन्दावन असली या प्राचीन वृन्दावन नहीं है । श्रीमद्भागवत* के वर्णन तथा अन्य उल्लेखों से जान पड़ता है कि प्राचीन वृन्दावन गोवर्धन के निकट था । गोवर्धन-धारण की प्रसिद्ध कथा की स्थली वृन्दावन पारसौली ( परम रासस्थली ) के निकट था । अष्टछाप कवि महाकवि सूरदास इसी ग्राम में दीर्घकाल तक रहे थे । सूरदास जी ने वृन्दावन रज की महिमा के वशीभूत होकर गाया है-हम ना भई वृन्दावन रेणु ...............




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सभी दृष्टि से कृष्ण पूर्णावतार हैं। आध्यात्मिक, नैतिक या दूसरी किसी भी दृष्टि से देखेंगे तो मालूम होगा कि कृष्ण जैसा समाज उद्धारक दूसरा कोई पैदा हुआ ही नहीं है। 

जब-जब भी धर्म का पतन हुआ है और धरती पर असुरों के अत्याचार बढ़े हैं तब-तब भगवान ने पृथ्वी पर अवतार लेकर सत्य और धर्म की स्थापना की है। 

भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी की मध्यरात्रि कअत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार लिया था।...........




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  • भगवान श्रीकृष्ण ही थे, जिन्होंने अर्जुन को कायरता से वीरता, विषाद से प्रसाद की ओर जाने का दिव्य संदेशश्रीमदभगवदगीता के माध्यम से दिया।
  • कालिया नाग के फन पर नृत्य किया, विदुराणी का साग खाया और गोवर्धन पर्वत को उठाकर गिरिधारी कहलाये।
  • समय पड़ने पर उन्होंने दुर्योधन की जंघा पर भीम से प्रहार करवाया, शिशुपाल की गालियाँ सुनी, पर क्रोध आने पर सुदर्शन चक्र भी उठाया।
  • अर्जुन के सारथी बनकर उन्होंने पाण्डवों को महाभारत के संग्राम में जीत दिलवायी।
  • सोलह कलाओं से पूर्ण वह भगवान श्रीकृष्ण ही थे, जिन्होंने मित्र धर्म के निर्वाह के लिए ग़रीब सुदामा के पोटली के कच्चे चावलों को खाया और बदले में उन्हें राज्य दिया।
  • उन्हीं परमदयालु प्रभु के जन्म उत्सव को जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है




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आप सभी को कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाए........
दीपक यादव॥



कृष्ण जन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण का जनमोत्सव है। योगेश्वर कृष्ण के भगवद गीता के उपदेश अनादि काल से जनमानस के लिए जीवन दर्शन प्रस्तुत करते रहे हैं। जन्माष्टमी को भारत में हीं नहीं बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी इसे पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं। श्रीकृष्ण ने अपना अवतार भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में लिया। चूंकि भगवान स्वयं इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे अत: इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। इसीलिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर मथुरा नगरी भक्ति के रंगों से सराबोर हो उठती है।




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Wednesday, May 23, 2012

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मैया मोरी मैं नहिं माखन खायो,
भोर भयो गैयन के पाछे, मधुवन मोहिं पठायो ।
चार पहर बंसीबट भटक्यो, साँझ परे घर आयो ॥
मैं बालक बहिंयन को छोटो, छींको किहि बिधि पायो ।
ग्वाल बाल सब बैर परे हैं, बरबस मुख लपटायो ॥
तू जननी मन की अति भोरी, इनके कहे पतिआयो ।
जिय तेरे कछु भेद उपजि है, जानि परायो जायो ॥
यह लै अपनी लकुटि कमरिया, बहुतहिं नाच नचायो ।
'सूरदास' तब बिहँसि जसोदा, लै उर कंठ लगायो ॥

By ---Deepak Yadav




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Sunday, April 29, 2012

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कृपया इसे एक बार अंत तक अवश्य पड़ें ! और शेयर करें ताकि यह अमूल्य जानकारी सब पहुंचे ! और सबको समझ आ जाए की हिन्दू धर्मं क्या है !!

इस कलिकाल में 'श्रीमद्भागवत पुराण' हिन्दू समाज का सर्वाधिक आदरणीय पुराण है। यह वैष्णव सम्प्रदाय का प्रमुख ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में वेदों, उपनिषदों तथा दर्शन शास्त्र के गूढ़ एवं रहस्यमय विषयों को अत्यन्त सरलता के साथ निरूपित किया गया है। इसे भारतीय धर्म और संस्कृति का विश्वकोश कहना अधिक समीचीन होगा। सैकड़ों वर्षों से यह पुराण हिन्दू समाज की धार्मिक, सामाजिक और लौकिक मर्यादाओं की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता आ रहा हैं।

इस पुराण में सकाम कर्म, निष्काम कर्म, ज्ञान साधना, सिद्धि साधना, भक्ति, अनुग्रह, मर्यादा, द्वैत-अद्वैत, द्वैताद्वैत, निर्गुण-सगुण तथा व्यक्त-अव्यक्त रहस्यों का समन्वय उपलब्ध होता है। 'श्रीमद्भागवत पुराण' वर्णन की विशदता और उदात्त काव्य-रमणीयता से ओतप्रोत है। यह विद्या का अक्षय भण्डार है।

*************सृष्टि-उत्पत्ति***************

सृष्टि-उत्पत्ति के सन्दर्भ में इस पुराण में कहा गया है- एकोऽहम्बहुस्यामि। अर्थात् एक से बहुत होने की इच्छा के फलस्वरूप भगवान स्वयं अपनी माया से अपने स्वरूप में काल, कर्म और स्वभाव को स्वीकार कर लेते हैं। तब काल से तीनों गुणों- सत्व, रज और तम में क्षोभ उत्पन्न होता है तथा स्वभाव उस क्षोभ को रूपान्तरित कर देता है। तब कर्म गुणों के महत्त्व को जन्म देता है जो क्रमश: अहंकार, आकाश, वायु तेज, जल, पृथ्वी, मन, इन्द्रियाँ और सत्व में परिवर्तित हो जाते हैं। इन सभी के परस्पर मिलने से व्यष्टि-समष्टि रूप पिंड और ब्रह्माण्ड की रचना होती है। यह ब्रह्माण्ड रूपी अण्डां एक हज़ार वर्ष तक ऐसे ही पड़ा रहा। फिर भगवान ने उसमें से सहस्त्र मुख और अंगों वाले विराट पुरुष को प्रकट किया। उस विराट पुरुष के मुख से ब्राह्मण, भुजाओं से क्षत्रिओं से क्षत्रिय, जांघों से वैश्य और पैरों से शूद्र उत्पन्न हुए।

विराट पुरुष रूपी नर से उत्पन्न होने के कारण जल को 'नार' कहा गया। यह नार ही बाद में 'नारायण' कहलाया। कुल दस प्रकार की सृष्टियाँ बताई गई हैं। महत्तत्व, अहंकार, तन्मात्र, इन्दियाँ, इन्द्रियों के अधिष्ठाता देव 'मन' और अविद्या- ये छह प्राकृत सृष्टियाँ हैं। इनके अलावा चार विकृत सृष्टियाँ हैं, जिनमें स्थावर वृक्ष, पशु-पक्षी, मनुष्य और देव आते हैं।

**************काल गणना***************

'श्रीमद्भागवत पुराण' में काल गणना भी अत्यधिक सूक्ष्म रूप से की गई है। वस्तु के सूक्ष्मतम स्वरूप को 'परमाणु' कहते हैं। दो परमाणुओं से एक 'अणु' और तीन अणुओं से मिलकर एक 'त्रसरेणु' बनता है। तीन त्रसरेणुओं को पार करने में सूर्य किरणों को जितना समय लगता है, उसे 'त्रुटि' कहते हैं। त्रुटि का सौ गुना 'कालवेध' होता है और तीन कालवेध का एक 'लव' होता है। तीन लव का एक 'निमेष', तीन निमेष का एक 'क्षण' तथा पाँच क्षणों का एक 'काष्टा' होता है। पन्द्रह काष्टा का एक 'लघु', पन्द्रह लघुओं की एक 'नाड़िका' अथवा 'दण्ड' तथा दो नाड़िका या दण्डों का एक 'मुहूर्त' होता है। छह मुहूर्त का एक 'प्रहर' अथवा 'याम' होता है।

युग वर्ष
सत युग चार हज़ार आठ सौ
त्रेता युग तीन हज़ार छह सौ
द्वापर युग दो हज़ार चार सौ
कलि युग एक हज़ार दो सौ

प्रत्येक मनु 7,16,114 चतुर्युगों तक अधिकारी रहता है। ब्रह्मा के एक 'कल्प' में चौदह मनु होते हैं। यह ब्रह्मा की प्रतिदिन की सृष्टि है। सोलह विकारों (प्रकृति, महत्तत्व, अहंकार, पाँच तन्मात्रांए, दो प्रकार की इन्द्रियाँ, मन और पंचभूत) से बना यह ब्रह्माण्डकोश भीतर से पचास करोड़ योजन विस्तार वाला है। उसके ऊपर दस-दस आवरण हैं। ऐसी करोड़ों ब्रह्माण्ड राशियाँ, जिस ब्रह्माण्ड में परमाणु रूप में दिखाई देती हैं, वही परमात्मा का परमधाम है। इस प्रकार पुराणकार ने ईश्वर की महत्ता, काल की महानता और उसकी तुलना में चराचर पदार्थ अथवा जीव की अत्यल्पता का विशद् विवेचन प्रस्तुत किया है।




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जिस प्रकार जिस व्यक्ति को अपनी भूख मिटानी होती हँ तो उसका खाना बनाने की किताब पढने मात्र से काम नहीं चलता 
उसे खाना बनाने की क्रिया करनी पड़ती हँ 
उसी प्रकार जिस व्यक्ति को भगवत प्राप्ति, भगवद दर्शन करना हँ तो उसका शास्त्रों को पढना मात्र काम नहीं देगा 
शास्त्रों के अनुसार या गुरु के बताये अनुसार साधना करनी पड़ेगी तभी लक्ष्य हासिल होगा.........




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इश्क दरिया हँ जिसका साहिल नहीं होता ............
हर दिल मोहब्बत के काबिल नहीं होता ................
रोता वो भी हँ जो डूबा हँ श्याम तेरे इश्क में ...............
और रोता वो भी हँ जिसे ये नसीब नहीं होता .
........................






By----http://about.me/deepakyadhuvansi




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Sunday, March 4, 2012

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होली उत्तर भारत का एक लोकप्रिय लोकगीत है। इसमें होली खेलने का वर्णन होता है। यह हिंदी के अतिरिक्त राजस्थानीपहाड़ीबिहारीबंगाली आदि अनेक प्रदेशों की अनेक बोलियों में गाया जाता है। इसमें देवी देवताओं के होली खेलने से अलग अलग शहरों में लोगों के होली खेलने का वर्णन होता है। देवी देवताओं में राधा-कृष्ण, राम-सीता और शिव के होली खेलने के वर्णन मिलते हैं।इसके अतिरिक्त होली की विभिन्न रस्मों की वर्णन भी होली में मिलता है




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आप सभी यदुवंशी दोस्तों को होली कि हर्दिक शुभकामनाये .........




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आप सभी यदुवंशी दोस्तों को होली कि हर्दिक शुभकामनाये .........




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Holi is an ancient festival of India and was originally known as 'Holika'. The festivals finds a detailed description in early religious works such as Jaimini's Purvamimamsa-Sutras and Kathaka-Grhya-Sutras. Historians also believe that Holi was celebrated by all Aryans but more so in the Eastern part of India. 

It is said that Holi existed several centuries before Christ. However, the meaning of the festival is believed to have changed over the years. Earlier it was a special rite performed by married women for the happiness and well-being of their families and the full moon (Raka) was worshiped. 





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Wednesday, February 29, 2012

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(यदुवंशी)      plz join yadhuvansi on facebook    




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Tuesday, February 21, 2012

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एक बार एक राजा ने अपने मंत्री से कहा, 'मुझे इन चार प्रश्नों के जवाब दो। जो यहां हो वहां नहीं, दूसरा- वहां हो यहां नहीं, तीसरा- जो यहां भी नहीं हो और वहां भी न हो, चौथा- जो यहां भी हो और वहां भी।'

मंत्री ने उत्तर देने के लिए दो दिन का समय मांगा। दो दिनों के बाद वह चार व्यक्तियों को लेकर राज दरबार में हाजिर हुआ और बोला, 'राजन! हमारे धर्मग्रंथों में अच्छे-बुरे कर्मों और उनके फलों के अनुसार स्वर्ग और नरक की अवधारणा प्रस्तुत की गई है। यह पहला व्यक्ति भ्रष्टाचारी है, यह गलत कार्य करके यद्यपि यहां तो सुखी और संपन्न दिखाई देता है, पर इसकी जगह वहां यानी स्वर्ग में नहीं होगी। दूसरा व्यक्ति सद्गृहस्थ है। यह यहां ईमानदारी से रहते हुए कष्ट जरूर भोग रहा है, पर इसकी जगह वहां जरूर होगी। तीसरा व्यक्ति भिखारी है, यह पराश्रित है। यह न तो यहां सुखी है और न वहां सुखी रहेगा। यह चौथा व्यक्ति एक दानवीर सेठ है, जो अपने धन का सदुपयोग करते हुए दूसरों की भलाई भी कर रहा है और सुखी संपन्न है। अपने उदार व्यवहार के कारण यह यहां भी सुखी है और अच्छे कर्म करन से इसका स्थान वहां भी सुरक्षित है।'




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jai shree ram




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Monday, February 20, 2012

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जय श्री राम जय बजरंगी हनुमान, जीवन की हर सीढ़ी पर सबक सीखिए हनुमानजी से.... बचपन की सरलता हम हनुमानजी से सीख सकते हैं। जवानी की सक्रियता उनके पराक्रम की ही कहानी है। प्रौढ़ता में जो समझ होनी चाहिए, वह भी हनुमानजी हमें सिखाएंगे। और बुढ़ापा सफल होता है पूर्ण समर्पण से। भारतीय संस्कृति में चार की संख्या का बड़ा महत्व है। चार वर्ण, चार युग और चार अंत:करण को कई बार याद किया जाता है। तुलसीदासजी ने श्रीहनुमानचालीसा की चालीस चौपाइयों में भी चार के आंकड़े को एक जगह याद किया है। 29वीं चौपाई में वे लिखते हैं- चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा।। अर्थात जगत को प्रकाशित करने वाले आपके नाम का प्रताप चारों युगों (सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग) में है। श्रीहनुमान पवनसुत हैं और पवन न सिर्फ चारों युग में है, बल्कि प्रत्येक स्थान पर है। विदेश में पानी अलग मिल सकता है, धरती अलग मिल सकती है, वहां भोजन अलग मिल सकता है, किंतु हवा सारी दुनिया में एक जैसी मिलती है। पानी, अग्नि को रोका जा सकता है, लेकिन आप हवा का बंटवारा नहीं कर सकते। चारों युग का एक और अर्थ है। हमारे जीवन की भी चार अवस्थाएं हैं - बचपन, जवानी, पौढ़ता और बुढ़ापा। प्रताप का एक साधारण सा अर्थ होता है योग्यता। इन चारों उम्र में हनुमानजी योग्यता की तरह हमारे जीवन में आ सकते हैं। बचपन की सरलता हम हनुमानजी से सीख सकते हैं। जवानी की सक्रियता उनके पराक्रम की ही कहानी है। प्रौढ़ता में जो समझ होनी चाहिए, वह भी हनुमानजी हमें सिखाएंगे। और बुढ़ापा सफल होता है पूर्ण समर्पण से। हनुमानजी समर्पण के देवता हैं। इन चारों अवस्थाओं में तालमेल बिठाना है तो मुस्कान सेतु का काम करती है। इसीलिए आप किसी भी उम्र के हों जरा मुस्कराइए..। बजरंगबली हनुमान की जय..!!




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Sunday, February 19, 2012

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“भगवान शिव की भक्ति का पर्व –महाशिवरात्रि”
आप सभी को राधाकृपा परिवार की ओर से “महाशिवरात्रि पर्व” की हार्दिक शुभकामनायें |
फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है. माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान् शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था. प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं. इसीलिए इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा गया.और इस दिन शिव का विवाह माता पार्वती जी के साथ हुआ था,
महाशिवरात्रि व्रत की विधि, कथा और महत्व जाने




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महाशिरात्रि के पावन पर्व की सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ!
ॐ नमः शिवाय 
हर हर महादेव




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श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय ४ में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है:- 

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥७॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥८॥

भावार्थः
जब जब धर्म की हानि होने लगती है और अधर्म आगे बढ़ने लगता है, तब तब मैं स्वयं की सृष्टि करता हूं, अर्थात् जन्म लेता हूं । सज्जनों की रक्षा एवं दुष्टों के विनाश और धर्म की पुनःस्थापना के लिए मैं विभिन्न युगों (कालों) मैं अवतरित होता हूं ।

द्वापर के अंतिम चरण की बात है. अनेक दुष्ट आततायी राजाओं ने इस धरा पर आतंक फैला रखा था . प्रजा उनके अत्याचारों से त्राहि त्राहि कर रही थी. धर्म का नाश हो चुका था, अधर्म फल-फूल रहा था. उस समय अनाचार इतना बढ़ गया था कि उसका बोझ उठा पाने में पृथ्वी असमर्थ हो गई थी. उससे छुटकारा पाने के लिए वह गौ का रूप धारण करके ब्रह्मजी की शरण में गयी. उस समय वह अत्यंत घबरायी हुई थी. वह बड़े करुण स्वर में रँभा रही थी और उसके नेत्रों से आंसू बह बह कर उसके मुंह पर आ रहे थे. ब्रह्मा जी के पास जकर उसने अपनी पूरी कष्ट कहानी कह सुनायी. ब्रह्माजी ने पृथ्वी के कष्टों को सुनकर उसे आश्वस्त किया और वे भगवान शंकर तथा अन्य देवताओं को लेकर पृथ्वी के साथ क्षीर सागर में नारायण के पास गए. उस समय श्रीनारायण सो रहे थे. उनको सोते जान ब्रह्माजी सभी देवताओं के साथ परम पुरुष सर्वान्तर्यामी प्रभु की स्तुति करने लगे. स्तुति करते करते ब्रह्माजी समाधिस्त हो गये. उन्होंने समाधि अवस्था में आकाशवाणी सुनी. तब जगत के निर्माता ब्रह्मा जी ने देवताओं से कहा-" हे प्रिय देवतागण! मैंने भगवान की वाणी सुनी है. तुम लोग भी उसे सुनलो और फिर अक्षरसः उसका पालन करो. भगवान को पृथ्वी के कष्टों के विषय में पहले से ही सब पता है. वे शीघ्र ही यदुकुल में वसुदेव के घर देवकी की कोख से जन्म लेंगें. उस समय सभी देवगण अपने अपने अंश से वहाँ ग्वाल-बाल और गोपियों के रूप में जन्म लेंगे. भगवान शेष भी वहां उनके अग्रज के रूप में अवरित होंगे. तब वे दुष्टों का संहार करके पृथ्वी का भार हल्का कर देंगे.




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Saturday, February 18, 2012

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श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः 

हे कृष्ण करुणासिन्धो दीनबन्धो जगत्पते।
गोपेश गोपिकाकान्त राधाकान्त नमोअस्तु ते ॥
अर्थ:-
हे कृष्ण! आप दुखियो के सखा तथा सृष्टि के उद्गम है।
आप गोपियो के स्वमी तथा राधा रानी के प्रेमी है।
मै आपको सादर प्रणाम करता हू।

तप्तकाञ्चनगौराङ्गी राधे व्रिन्दावनेश्वरि ।
वृषभानुसुते देवि प्रणमामि हरिप्रिये॥
अर्थ:
मै उन राधारानी को प्रणाम करता हू जिनकी शारीरिक कान्ति पिघले सोने के सदृश है,
जो वृन्दावन कि महारानी है। आप वृषभानु की पुत्री है और भगवान कृष्ण को अत्यन्त प्रिय हैं।




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Wednesday, February 15, 2012

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कहते है कि जो वृदांवन में शरीर को त्यागता है. तो उन्हें अगला जन्म श्री वृदांवन में ही होता है. और अगर कोई मन में ये सोच ले, संकल्प कर ले कि हम वृदावंन जाएगे, और यदि रास्ते में ही मर जाए तो भी उसका अगला जन्म वृदांवन में ही होगा. केवल संकल्प मात्र से उसका जन्म श्री धाम में होता है.
ऐसा ही एक प्रसंग श्री धाम वृन्दावन है, तीन मित्र थे जो युवावस्था में थे तीनों बंग देश के थे. तीनों में बडी गहरी मित्रता थी, तीनो में से एक बहुत सम्पन्न परिवार का था पर उसका मन श्रीधाम वृदांवन में अटका था.....




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Tuesday, February 14, 2012

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♥♥ (¯*•๑۩۞۩: Jai shri radhey krishna :۩۞۩๑•*¯) ♥♥
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Wednesday, February 8, 2012

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shree radhe..........




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Yadhuvansi(यदुवंशी): Photo gallery

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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे || हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे || हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे || हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे || हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे || हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे || हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे || हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे || हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||




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राधा ऐसी भयी श्याम की दीवानी,
की बृज की कहानी हो गयी
एक भोली भाली गौण की ग्वालीन ,
तो पंडितों की वानी हो गई

राधा न होती तो वृन्दावन भी न होता
कान्हा तो होते बंसी भी होती,
बंसी मैं प्राण न होते
प्रेम की भाषा जानता न कोई

कनैया को योगी मानता न कोई
बीन परिणय के देख प्रेम की पुजारीन
कान्हा की पटरानी हो गयी

राधा ऐसी भाई श्याम की

राधा की पायल न बजती तो मोहन ऐसा न रास रचाते
नीन्दीयाँ चुराकर , मधुवन बुलाकर
अंगुली पे कीसको नचाते
क्या ऐसी कुश्बू चन्दन मैं होती
क्या ऐसी मीश्री माखन मैं होती
थोडा सा माखन खिलाकर वोह ग्वालिन
अन्नपुर्ना सी दानी हो गयी
राधा ऐसी भाई श्याम की……….

राधा न होती तो कुंज गली भी
ऐसी निराली न होती
राधा के नैना न रोते तो
जमुना ऐसी काली न होती
सावन तो होता जुले न होते
राधा के संग नटवर जुले ना होते
सारा जीवन लूटन के वोह भीखारन
धनिकों की राजधानी हो गयी
राधा ऐसी भाई श्याम की……….




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कृष्णा जिनका नाम है, गोकुल जिनका धाम है 
ऐसे श्री भगवान को बारम्बार प्रणाम है ।।

यशोदा जिनकी मइया है नन्द जी जिनके बप्इया है 
ऐसे श्री गोपाल को बारम्बार प्रणाम है ।।

लूट-लूट दही माखन खायो, ग्वाल-वाल संग धेनू चरायो
ऐसे लीलाधाम को बारम्बार प्रणाम है ।।

द्रुपद सुता को लाज बचायो, ग्रहेस गजको पन्ड छुड़ायो
ऐसे कृपाधाम को बारम्बार प्रणाम है ।।




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रे मनवा प्रेम जगत का सार
प्रेम पुजारिन राधे रानी, कृष्ण प्रेम अवतार

प्रेम की मुरली, प्रेम की जमुना,
प्रेम ही राधे, प्रेम ही कृष्णा।
एक दूजे के है अनुरागी,
... सब में जगायें प्रेम की तृष्णा
प्रेम में डूबे प्राण करत हैं
प्रेम की जय जयकार...............मनवा प्रेम जगत का सार

प्रेम डगर पर चलते चलते,
भक्ति की पावन नदिया आये
भक्ति की नदिया बहते-बहते
प्रेम के सागर में मिल जाये

भक्ति के दोनो ओर प्रेम है,
भक्त खडे मझधार मनवा प्रेम जगत का सार




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Monday, February 6, 2012

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आज हैं !! षटतिला एकादशी !!
"षटतिला एकादशी" माघ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी का व्रत रखा जाता है. षटतिला एकादशी के दिन तिलों का छ: प्रकार से उपयोग किया जाता है. जैसे - तिल से स्नान करना, तिल का उबटन लगाना, तिल से हवन करना, तिल से तर्पण करना, तिल का भोजन करना और तिलों का दान करना - ये छ: प्रकार के उपयोग हैं. इसलिए इसे षटतिला एकादशी व्रत कहा जाता है. 
षटतिला एकादशी की विधि, कथा और महत्व जाने?............सभी जानकारी के लिये दी हुई लिंक पर क्लिक करके जरुर पढ़े..............


facebook.com/yadhuvansideepak                                          











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गोपाल तेरी पूजा हम से न बनी रे...नंदलाला तेरी पूजा हम से न बनी रे... हम से न बनी रे.............हम से न बनी रे.......... गोपाल तेरी पूजा हम से न बनी रे...नंदलाला तेरी पूजा हम से न बनी रे... 1. कहा पाऊ सरयू मै......... कहा पाऊ गंगा..... कहा पाऊ यमुना अमृत से भरी रे .......नंदलाला तेरी पूजा हम से न बनी रे... 2.कहा पाऊ मोर मुकुट कहा पाऊ पताका ...कहा पाऊ लकुटी हिरो से जड़ी रे तेरी कहा पाऊ लकुटी हिरो से जड़ी रे 3. कहा पाऊ चन्दन मै ..कहा पाऊ तुलसी.... कहा पाऊ डलिया फूलो से भरी रे......नंदलाला तेरी पूजा हम से न बनी रे... 4.कहा पाऊ माखन.... मै कहा पाऊ मिश्री.... कहा पाऊ मटकी दही से भरी रे........नंदलाला तेरी पूजा हम से न बनी रे... 5.मैंने सुना है तुम भक्ति से मिलते हो ... कहा पाऊ भक्ति मै भाव भरी रे....नंदलाला तेरी पूजा हम से न बनी रे... गोपाल तेरी पूजा हम से न बनी रे...नंदलाला तेरी पूजा हम से न बनी रे... हम से न बनी रे.............हम से न बनी रे.......... गोपाल तेरी पूजा हम से न बनी रे...नंदलाला तेरी पूजा हम से न बनी रे...




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Online – “Mahamantra Jap”
!! HARE KRISHNA HARE KRISHNA KRISHNA KRISHNA HARE HARE
HARE RAM HARE RAM RAM RAM HARE HARE!!
Be part of Mahamantra Jap, Add your request in Jap.
Visit:http://radhakripa.com/radhakripa/radhakripa.php?pageid=jap&jap_id=4




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Sunday, February 5, 2012

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Shri krishna gobind hare murari heynath narayan vasudeva !!

Shri krishna gobind hare murari heynath narayan vasudeva !!


Shri krishna gobind hare murari heynath narayan vasudeva !!


Shri krishna gobind hare murari heynath narayan vasudeva !!


Shri krishna gobind hare murari heynath narayan vasudeva !!


Shri krishna gobind hare murari heynath narayan vasudeva !!


Shri krishna gobind hare murari heynath narayan vasudeva !!


HARE KRISHNA.............




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Saturday, February 4, 2012

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श्री बरसाने वाली की जय 
हमारी प्यारी राधा रानी जी की जय 
सभी भगतों की नैया पार क...


श्री बरसाने वाली की जय हमारी प्यारी राधा रानी जी की जय सभी भगतों की नैया पार करने वाली दया मई सरकार की जय श्यामा जु मेरी नैया उस पार लगा देना अब तक जो निभाया है आगे भी निभा देना दल बल के साथ माया घेरे जो मुझे आकर तुम देखती न रहना बस आके बचा लेना श्यामा जु मेरी नैया उस पार लगा देना संभव है झंझटों में में तुमको भूल जाऊँ तुम देखती न रहना बस आके बचा लेना श्यामा जु मेरी नैया उस पार लगा देना सभी भगतों की नइया पार करने वाली दया मई श्यामा जु सरकार की जय श्री बरसाने वाली की जय




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chatur-vidha bhajante mam
janah sukritino ’rjuna
arto jijnasur artharthi
jnani cha bharatarsabha" (Bhagwat Gita: Chapter Seven verse 16)

"Sri Krishna said: O Arjuna, four kinds of pious men begin to render devotional service unto Me—the distressed, the inquisitive, the desirer of wealth, and the one who is searching for knowledge of the Absolute."

"udarah sarva evaite
jnani tv atmaiva me matam
asthitah sa hi yuktatma
mam evanuttamam gatim" (Bhagwat Gita: Chapter Seven verse 18)

"Sri Krishna said: All these devotees are undoubtedly magnanimous souls, but he who is situated in knowledge of Me, I consider to be just like My own self. Being engaged in My transcendental service, he/she is sure to attain Me, the highest and most perfect goal."
HARE KRISHNA...........




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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे || हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||हरे कृष्ण हरे 


कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे || हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण


 कृष्ण हरे हरे || हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे


 हरे || हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे || हरे


 राम हरे राम राम राम हरे हरे ||हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे || हरे राम हरे


 राम राम राम हरे हरे ||हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे || हरे राम हरे राम राम


 राम हरे हरे ||हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे || हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||




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