Monday, December 17, 2012

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इन्ही के सहारे जीए जा रहे है,
नाम का अमृत पीए जा रहे हैं।
मेरा बिगड़ा जीवन संवारा ना होता,
तो दुनिया में कोई हमारा ना होता॥




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Saturday, December 15, 2012

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एक बार एक राजा शिकार के उद्देश्य से अपने काफिले के साथ किसी जंगल से गुजर रहा था | दूर दूर तक शिकार नजर नहीं आ रहा था, वे धीरे धीरे घनघोर जंगल में प्रवेश करते गए | अभी कुछ ही दूर गए थे की उन्हें कुछ डाकुओं के छिपने की जगह दिखाई दी | जैसे ही वे उसके पास पहुचें कि पास के पेड़ पर बैठा तोता बोल पड़ा – ,
” पकड़ो पकड़ो एक राजा आ रहा है इसके पास बहुत सारा सामान है लूटो लूट
ो जल्दी आओ जल्दी आओ |”

तोते की आवाज सुनकर सभी डाकू राजा की और दौड़ पड़े | डाकुओ को अपनी और आते देख कर राजा और उसके सैनिक दौड़ कर भाग खड़े हुए | भागते-भागते कोसो दूर निकल गए | सामने एक बड़ा सा पेड़ दिखाई दिया | कुछ देर सुस्ताने के लिए उस पेड़ के पास चले गए , जैसे ही पेड़ के पास पहुचे कि उस पेड़ पर बैठा तोता बोल पड़ा – आओ राजन हमारे साधू महात्मा की कुटी में आपका स्वागत है | अन्दर आइये पानी पीजिये और विश्राम कर लीजिये | तोते की इस बात को सुनकर राजा हैरत में पड़ गया , और सोचने लगा की एक ही जाति के दो प्राणियों का व्यवहार इतना अलग-अलग कैसे हो सकता है | राजा को कुछ समझ नहीं आ रहा था | वह तो
ते की बात मानकर अन्दर साधू की कुटिया की ओर चला गया, साधू महात्मा को प्रणाम कर उनके समीप बैठ गया और अपनी सारी कहानी सुनाई | और फिर धीरे से पूछा, “ऋषिवर इन दोनों तोतों के व्यवहार में आखिर इतना अंतर क्यों है |”

साधू महात्मा धैर्य से सारी बातें सुनी और बोले ,” ये कुछ नहीं राजन बस संगति का असर है | डाकुओं के साथ रहकर तोता भी डाकुओं की तरह व्यवहार करने लगा है और उनकी ही भाषा बोलने लगा है | अर्थात जो जिस वातावरण में रहता है वह वैसा ही बन जाता है कहने का तात्पर्य यह है कि मूर्ख भी विद्वानों के साथ रहकर विद्वान बन जाता है और अगर विद्वान भी मूर्खों के संगत में रहता है तो उसके अन्दर भी मूर्खता आ जाती है |

शिक्षा - हमें संगती सोच समझ कर करनी चाहिए




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Thursday, December 13, 2012

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गाम के मंदिर में एक बाबा रहता था उसको भगवान पर बहुत विश्वास था.एक बार गाम की नदी में बाढ़ आगई, सब लोग जाने लगे, लोगो ने बाबा को भी चलने के लिए कहा लेकिन बाबा नहीं गया वो बोला की मै भगवान को छोड़ कर नहीं जाउगा, मेरी रक्षा तो खुद भगवान करेगे, लोग चले गए, पानी और बढ गया, सेना के लोग नाव लेकर आये बाब को कहा चलने को बाबा नहीं गया.पानी मंदिर में भर ने लगा, हलिकोप्टर से कुछ लोग आये कहा बाबा अब तो चलो बाबा नहीं गया. कहने लगा की मेरी रक्षा के लिए भगवान है, पानी और बढ़ गया बाबा डूब कर मर गया वो भगवान के सामने आया, बाबा ने कहा की मैंने तेरी सेवा में जीवन लगा दिया और तू मुझे बचाने भी नहीं आया. तब भगवान ने मुस्करा कर कहा- "अरे मुर्ख,! जो गाव वाले आये थे वो में ही था, जो नाव लेकर आये थे वो भी मेही था, जो हलिकोप्टर लेकर आया वो भी मै था. लेकिन तुने मुझे नहीं पहचाना तो क्या फायदा है तेरी इस दिखावटी सेवा का." ( भगबान हर जगह है बस उसको पहचान ने की जरुरत है, आप जब किसी दुखी और गरीब को देखे तो मुह न फेरे ये देखे की उस रूप में भगवान आप की परीक्षा लेने तो नहीं आये.आप सब की मदद करे इश्वर आप की मदद के लिए हर जगह हर समय विद्यमान है..
जय श्री कृष्ण!!




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एक विद्वान् संत को आदत थी हर बात पे ये कहने की --नारायण नारायण प्रभु तेरा शुक्रिया है तू जो करता है अच्छा ही करता है !! उनके चेलों को बड़ा अजीब लगता था हर अच्छे काम व् बुरे काम पे ये कहना !! उनको चिड होती थी !! एक दिन महात्मा तुलसी का पौधा लगाने के लिए खुरपे से ज़मीन खोद रहे थे की खुरपा उनकी उंगलीओं पर लग गया खूब खून बहने लगा !! उनके चेलों ने जखम धो कर पट्टी बाँधी !! संत बार बार बोल रहे थे नार
ायण न
ारायण प्रभु तेरा शुक्रिया है तू जो करता है अच्छा ही करता है !!चेले कह रहे थे क्या ये अच्छा हुआ की आपकी ऊँगली कट गयी ???
अगले दिन गुरु जी एक ख़ास शिष्य के साथ जंगल के अन्दर बने माँ काली के मदिर मे दर्शन के लिए निकल पड़े !! शिष्य भी साथ था दोपहर हुई तो गुरूजी ने कहा प्यास लगी होगी तुमको जाओ थोडा जल ले आओ हम इस पेड़ के नीचे विश्राम करते हैं !! शिष्य पानी लेने निकला तो रास्ता भूल गया !! शाम हो गयी !! शिष्य को रास्ता न मिला गुरूजी वहीँ उसका इंतज़ार कर रहे थे !! तबी वहीँ एक जंगली आदिवासी लोगों का झुण्ड ढोल नगारे बजा कर वहाँ आ पहुंचा उन्होंने विद
्वान् संत को पकड लिया व् ख़ुशी से नाचते गाते उनको बाँध कर लेकर चल पड़े !!संत बार बार बोल रहे थे नारायण नारायण प्रभु तेरा शुक्रिया है तू जो करता है अच्छा ही करता है !!वो उनको काली मंदिर ले गए व् उनको बोले की हम हर साल माँ कलि को मनुष्य की बलि देते है !! सुबह आपकी बलि देंगे व् आपका रक्त माँ काली भोग लगा लेंगी !! सारी रात उनको बाँध के रक्खा !! उधर शिष्य सारी रात जंगले मे डरा सहमा बैठा रहा व् गालिआं निकालता रहा भगवान् को की तू बेरहम है तू दया नहीं करता आदि !! सुबह हुई संत को बोला स्नान कर के आओ ये काला चोला पहनो आपकी बलि देंगे !! संत तय्यार हुए व् माँ के आगे आ कर बैठ गए !!चेहरे पर कोई शिकन नहीं !!संत बार बार बोल रहे थे नारायण नारायण प्रभु तेरा शुक्रिया है तू जो करता है अच्छा ही करता है !!आदिवासी जल्लाद बोला आप साष्टांग प्रणाम की मुद्रा मे लेट जाओ वो लेट गए !! वो बोला अपने दोनों हाथ जोड़ करमाँ काली को प्रणाम करो !!संत ने दोनों हाथ ऊपर उठाये व् फिर बोले -- नारायण नारायण प्रभु तेरा शुक्रिया है तू जो करता है अच्छा ही करता है !!जल्लाद गुस्से से बोल पड़ा ---ये किसको पकड़ लाये तुम इसका तो अंग भंग हुआ है इसकी बलि नहीं दी जा सकती माँ रुष्ट हो जायेगी !!उन्होंने संत को धक्के मार कर बाहर निकाल दिया मंदिर से !!
संत वापिस आ रहे थे की शिष्य उनको मिल गया !!उसने बताया की मै रास्ता भूल गया था बहुत बुरी रात कटी !! संत ने उसको बताया की आज कैसे भगवान् ने जो किया अच्छा किया !!मेरी जान आदिवासी लोगों ने बक्श दी !!अगर मेरी ऊँगली ना कटी होती तो मेरी बलि दे दी जाती !! शिष्य बोला चलो वो तो जो अच्छा हुआ ठीक है पर मेरा रास्ता भूल जाना कैसे अच्छा हुआ ???? संत बोले -- प्यारे अगर तू मेरे साथ होता तो मुझे छोड़ दिया जाते पर तू तो पक्का बलि चढ़ जाता क्योंकि तेरा तो कोई अंग भंग नहीं हुआ था !! इसलिए हमेशा उस परमात्मा की राजा मे ही राज़ी रहा करो और बोलो-- नारायण नारायण प्रभु तेरा शुक्रिया है तू जो करता है अच्छा ही करता है !! अब तो शिष्य भी बोलने लगा नारायण नारायण प्रभु तेरा शुक्रिया है तू जो करता है अच्छा ही करता है !!आप सब भी बोला करो -नारायण नारायण प्रभु तेरा शुक्रिया है तू जो करता है अच्छा ही करता है !!नारायण!! नारायण!!नारायण !!नारायण!!
एक संत के श्रीमुख से ...................




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